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अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा एक बार फिर चांद पर इंसान को भेजने की तैयारी कर रहा है। आर्टेमिस 1 मिशन के तहत 29 अगस्त को नासा की पहली उड़ान खुलेगी। जानकारी के मुताबिक अगर सब कुछ सही रहता है तो साल 2025 में इंसान को चांद पर दोबारा ले जाने के लक्ष्य के साथ आर्टेमिस प्रोजेक्ट पटरी पर आ जाएगा।
42 दिनों तक चल सकता है मिशन
आर्टेमिस 1 मिशन में नासा की ओर से नया और सुपर हैवी रॉकेट को यूज किया जाएगा और इसमें स्पेस लॉंच सिस्टम लगाया गया है जिसे पहले कभी-भी यूज़ नहीं किया गया है। अपोलो मिशन के कमांड सर्विस मॉडयूल के उलट ओरियन एमपीसीवी एक सौर-संचालित प्रणाली है। इसमें लगी विशिष्ट एक्स-विंग शैली की सौर सरणियों को मिशन के दौरान शटल पर दबाव को कम करने के लिए आगे या पीछे घुमाया जा सकता है। यह 6 अंतरिक्ष यात्रियों को 21 दिनों तक स्पेस में ले जाने में सक्षम है। बिना चालक दल के भी आर्टेमिस 1 मिशन 42 दिनों तक चल सकता है।
इंटरनेशन प्रोजेक्ट है आर्टेमिस
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अपोलो मिशन के उलट आर्टेमिस एक इंटरनेशनल प्रोजेक्ट है। ओरियन एमपीसीवी में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अमेरिका में ही बना कैप्सूल, ईंधन, पानी, हवा जैसी अहम चीजों की आपूर्ति के लिए यूरोप में बना सर्विस मॉडयूल शामिल है। ऊर्जा के लिए सूरज पर निर्भरता के कारण आर्टेमिस के लांच के समय पर कुछ चीजों का ध्यान रखना होगा क्योंकि, उस समय पृथ्वी और चांद की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि उड़ान के दौरान किसी भी बिंदु पर स्पेस शटल सूर्य से 90 मिनट से ज्यादा तक छाया में ना रहे।
एसएलएस ओरियन को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करेगा जहां पर इसके मूल चरण को छोड़ दिया जाएगा और उसे समुद्र में गिरा दिया जाएगा। चांद के लिए एक स्पेस शटल को उड़ाने के लिए जरूरी ऊर्जा का उपयोग उड़ान के इसी पहले चरण में किया जाता है। इसके बाद ओरियन को पृथ्वी की कक्षा के बाहर धकेल दिया जाएगा और एसएलएस के दूसरे चरण के जरिये चंद्र-बद्ध प्रक्षेपवक्र पर धकेल दिया जाएगा। इसके बाद ओरियन आईसीपीएस से अलग हो जाएगा और अगले कुछ दिन चांद के छोर पर बिताएगा।
10 छोटे उपग्रह भी होंगे स्थापित
अगर आर्टेमिस 1 सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच जाता है तो ये परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। मिशन के दौरान ओरियन 10 छोटे उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करेगा जिन्हें क्यूबसैट के नाम से जाना जाता है। इनमें से ही एक में खमीर होगा जो ये देखने के लिए होगा कि चांद पर माइक्रोग्रेविटी और विकिरण वातावरण सूक्ष्मजीवों के विकास को किस तरह से प्रभावित करते हैं। इस दौरान आइसक्यूब चांद की परिक्रमा करेगा और चांद पर बर्फ के भंडार की खोज करेगा और जिसका उपयोग भविष्य में चांद पर जाने वाले यात्री कर पाएंगे।
करीब 23 दिन अंतरिक्ष में बिताएगा
अंतरिक्ष यान को धीरे करने के लिए ओरियन अपने ऑनबोर्ड थ्रस्टर्स को फायर करेगा और चांद के गुरूत्वाकर्षण को इसे कक्षा में पकड़ने में मदद करेगा। इस चरण के दौरान ओरियन चांद से करीब 70 हजार किलोमीटर की यात्रा करेगा और पृथ्वी से अब तक की सबसे ज्यादा दूरी पर पहुंचेगा। इस दौरान अगर इसमें अंतरिक्ष यात्री होते तो उन्हें दूर से पृथ्वी और चांद का भव्य दृश्य दिखाई देता। ओरियन चांद की कक्षा में 6 से 23 दिन बिताकर चांद की कक्षा से बाहर निकलने के लिए एक बार फिर अपने थ्रस्टर्स को फायर करेगा और खुद को पृथ्वी प्रक्षेपवक्र पर वापस लाएगा।
चांद की सतह पर दिन में तापमान 120 डिग्री तक पहुंच सकता है तो रात में -170 डिग्री तक जा सकता है। इस तरह से तापमान परिवर्तन महत्वपूर्ण थर्मल विस्तार और सामग्रियों के संकुचन का कारण बन सकता है, इसलिए ओरियन को बिना असफलता के महत्वूपर्ण थर्मल तनाव का सामना करने वाली सामग्री के साथ बनाया गया है। इस मिशन का एक मुख्य लक्ष्य इस बात की जांच करना भी है कि कैप्सूल के अंदर पूरे समय तक सांस लेने वाला वातावरण बना रहे।