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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण कानून, 2005 के तहत अब तक शुरू किए गए मामलों की संख्या के बारे में बताने का निर्देश दिया है। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि इस संबंध में ब्योरा हासिल करने के लिए नालसा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को एक उपयुक्त प्रश्नावली भेज सकता है और आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकता है।
कितने मामलों में आश्रय गृहों की जरूरत पड़ी
अदालत (Supreme Court) ने नालसा को यह भी बताने के लिए कहा है कि कितने मामलों में संरक्षण अधिकारी/सेवा प्रदाता या आश्रय गृहों की सेवाओं की जरूरत पड़ी। केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने पीठ को बताया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा विचाराधीन ‘प्रोजेक्ट शक्ति’ के साथ-साथ कानून एवं न्याय मंत्रालय के तत्वावधान में अन्य परियोजनाएं औपचारिक रूप दिए जाने के चरण में हैं।
‘मिशन शक्ति’ को पहले ही मिल चुकी है कैबिनेट की मंजूरी
भाटी ने बताया कि ‘मिशन शक्ति’ को पहले ही कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 20 जुलाई तय की है। सुप्रीम कोर्ट घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करने और उनके लिए आश्रय गृह बनाने के लिए देशभर में पर्याप्त बुनियादी ढांचे के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
घरेलू हिंसा महिलाओं के खिलाफ सबसे आम अपराध
याचिका में कहा गया है कि 15 साल से अधिक समय पहले कानून लागू होने के बावजूद घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ‘महिलाओं के खिलाफ अपराध’ के तहत दर्ज किए गए 4.05 लाख मामलों में से 30 प्रतिशत से अधिक घरेलू हिंसा के मामले थे।